पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम - अलबेला
लेखक - अरविंद सिंह नेगी
'अलबेला' अरविंद सिंह नेगी द्वारा लिखित इस किताब के कवर को देखकर एक बारगी आप सोच सकते है कि इस किताब में हिम युग के किसी मानव की कहानी से अधिक क्या होगा?
सच भी है! इसमें यहीं है, लेकिन जब हम इस किताब को पढ़ते है, तो हमें ऐसा आनंद मिलता है कि जिसे शब्दों में बताना मुश्किल है। एक सुखद अहसास। जिस कारण इस किताब के बारे में लिखते हुए हम खुद को रोक नहीं पाते।
अलबेला: ये कहानी अलबेला नामक उस लड़के की है जो एक कबीले पर आए घोर संकट के समय पैदा होता है। चूंकि वो एक पगपालया है (ऐसा शिशु जो सिर के बजाए पैरों से धरती पर आया है) इसलिए उसे अलबेला नाम मिलता है।
अलबेला जन्म से ही बड़ा जिज्ञासु है, और तरह-तरह के प्रश्न उसके मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते रहते है। जैसे-आसमान नीला क्यों है? बर्फ सफेद क्यों है? हम माँस क्यों खाते है? इत्यादि इन्हीं सवालों के उत्तर की खोज उससे कई खोजे करवा लेती है। जिन्हें पढ़ते हुए हम कल्पना करने लगते है कि हाँ ऐसा ही हुआ होगा।
इस किताब में पात्रों के नाम अजीब नहीं लगते। हर नाम को कारण देने वाला कारण मौजूद है। वैसे पात्रों के अजीब नामों की बात की जाए तो आपको पढ़ने को मिलेगा- झरना, अजूबा, तूफान, सन्नाटा और उनसे जुड़े रोचक किस्से।
इस किताब के हर अध्याय में रोमांच भरा पड़ा है। बीच अंतराल में ऐसा क्षण आता है जब हम सोचने लगते है कि आगे क्या होगा? कहानी में एक युद्ध भी है। जिसमें हर महत्वपूर्ण बिंदु का ध्यान रखा गया है।
ये उपन्यास मुझे इतना जोरदार लगा है कि मैं यहीं कहूंगा, इसे बच्चों की किताब समझकर नजरअंदाज न करें। विशेषकर तब जब हिंदी में एडवेंचर के नाम पर बाल पत्रिकाओं और कॉमिक्स के अलावा किसी का नाम नहीं लिया जाता।
इस पुस्तक को क्यों पढ़े?
ये किताब हर उस हिंदी पाठक को पढ़ना चाहिए, जो अपने बचपन को फिर से जीना चाहता हो।
उपन्यास का कथानक साधारण होते हुए भी बेहद असाधारण सा लगता है। कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगा। अंत में यहीं कहूंगा कि हिंदी से दूर भागते अपने बच्चो को ये किताब ज़रूर पढ़ने को दे। खुद भी पढ़े, बेहद मजा आएगा।
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