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Pustak Parichay : वोल्गा से गंगा pustak samiksha

 पुस्तक समीक्षा  

पुस्तक का नाम - वोल्गा से गंगा

लेखक - राहुल सांकृत्यायन

ये जो पुस्तक है भारतीय इतिहास को मानव के विकास क्रम में समझाने के लिए सबसे नायाब पुस्तक है ऐसा मैं मानता हूं , आज तक जो भी पुस्तकें मैने पढ़ी है सबसे धीमी गति से पढ़ी गयी पुस्तक है , कई सारी कहानियां दो से तीन चार बार भी पढ़ी है एकदम टेस्ट बुक की तरह , क्योंकि इसे समझने के लिए भी एक आला दर्जें का दिमाग चाहिए जो शायद अपने पास कम है।

राहुल सांकृत्यायन जी की ये अनुपम भेंट है हम जैसे इतिहास् में रुचि रखने बाले व्यक्ति के लिए , क्योकि कई कसौटियों पर कसने के बाद जो निकलता है उसे राहुल जी ने अपनी कल्पना के अनुरूप ढाला है बाकी आपकीं रुचि है कि आप उनको कैसे समझते है।
वोल्गा से गंगा में कुल 20 कहानियां है जो आपको 6000 ईसापूर्व से लेके 1942 तक लेके आती है ।
शुरुआती कहानियां निशा दिवा अमृताश्व और पुरुहूत , प्रागैतिहासिक काल की वो कल्पना जन्य कहानियां है जो मानव के जन्म के बाद उसके सामाजिक परिवारिक प्राकृतिक सम्बन्धो का वर्णन करती है ।
अगली चार कहानियां पुरुधान अंगिरा सुदास और प्रवाहण वेद और उपनिषद आधारित वो कहानियां है जो ब्राह्मणवादी सोच का जबरदस्त पोस्टमार्टम करती है ।आगे वंधुलमल्ल बौद्धकालीन व्यवस्था को चित्रित करती है , नागदत्त जो कि दसवीं कहानी है कौटिल्य के समय की कथा है , प्रभा बुद्धचरित पर आधरित बुद्ध के समय के भारत का वर्णन करती है।

सुपर्ण यौधेय गुप्त काल मे कालिदास के ग्रन्थ साहित्य पर आधारित है जो पाणिनि के समय के भारत का वर्णन करती है ।
आगे 13वी कहानी दुर्मुख बेहद कटु हर्ष कालीन समय आधारित कहानी है , उसके बाद चक्रपाणि 1200 ईसवी के भारत को विभिन्न स्रोतों पर आधारित कहानी है ।
बाबा नूरदीन सूफी परम्परा से भारत में इस्लाम का वर्णन करती है। आगे सुरैया 16वी सदी की इस पुस्तक की 16वी कहानी है जो अकबर के समय आधारित है
17वीं रेखा भगत 18वी सदी के किसानों की दुर्दसा को बताती है , 18वी कहानी मंगल सिंह गदर के समय की ऐतिहासिक कहानी है जो बहुत ही रोचक कहानी है, 19बी सफदर 1922 की वो कहानी है जो कैसे लोगो को स्वतंन्त्रता आंदोलन से जोड़ती है एक आराम तलब अफसर को परिवर्तित करने बाली कथा है और सबसे अंतिम 20वी कहानी सुमेर 1942 में गंगा तट पटना में एक छात्र के वार्ता लाप से शुरू होती है और विश्वयुद्ध के समय वायुसेना में उस युवा के प्राणोत्सर्ग की ऐतिहासिक कहानी है।
ये पुस्तक वाकई बेहद ऐतिहासिक किताब है राहुल सांकृत्यायन जैसा व्यक्तित्व जो दर्जनों भाषाओं के ज्ञाता हो , दुनियाँ में घुमक्कड़ी जीवन जीने वाला हो धर्म आद्यात्म दर्शन लोकसाहित्य इतिहास जैसे अनगिनत विषयों के ज्ञाता हो उनकी पुस्तक के बारे में मुझ जैसे अदने व्यक्ति को बहुत सोचना पड़ेगा बाकी सूरज को दीप दिखाने से कोई फायदा नही है , अंत में मैं यही कहूंगा कि पुस्तक वाकई ऐतिहासिक है और इस युग मे लिखी गयी शीर्ष पुस्तकों में से एक है।।
राहुल जी की लेखनी को प्रणाम और नमन ,जो हम जैसे लोगो को इतिहास का ये अमूल्य खजाना भेंट किया।।
जय जगत
-योगेश यादव "योगी"

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